साधारण और अ-साधारण में सिर्फ यही एक छोटा सा फर्क है !
लक्ष्य प्राप्ति के सफ़र में निरंतरता का महत्त्व यही बताया गया है ! हम बहुत समय तक कोशिश करते रहते हैं , समय बीतता जाता है, और लक्ष्य दूर दूर तक नज़र नहीं आता !
अंततः हमें लगता है कि हम तो बेकार ही भाग रहे हैं, हर व्यक्ति हमें समझा रहा है, कि ये लक्ष्य मूर्खतापूर्ण है, ऐसा नहीं हो सकता, पर हम फिर भी लगे हुए हैं !
और अंत में हम सोचते हैं कि सब सही ही कह रहे हैं, ये मूर्खता ही तो है ! ये निरंतरता, लक्ष्यप्राप्ति, बड़े लक्ष्य, बड़ी सोच सिर्फ किताबों में ही अच्छी लगती है ! ऐसा कुछ नहीं होता ! और हम अपनी राह छोड़ देते हैं !
बस एक गलती करते हैं ! हम सोचते हैं कि "अंत में" हमने ये निर्णय लिया !
पर क्या ये सचमुच अंत था ? या एक अंकुर बस फूटने ही वाला था, एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत होने ही वाली थी जब हमने उस बीज को पानी देना बंद कर दिया !
हमें ये बात समझनी होगी, कि अंत तब तक नहीं है, जब तक हम हार नहीं मान लेते !
यदि हमारा लक्ष्य सही है, तो अंत तो तभी होगा जब लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा, और एक नयी शुरुआत होगी !
बस निरंतरता ! यही एक सत्य है ! हमें नहीं मालूम की हम बस पहुँचने ही वाले हैं , इसलिए हम हार नहीं मान सकते ! और जो मान लेते हैं वो बस अपने आपको "असाधारण" से "अ"समर्थ हुआ पाते हैं !
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