मुझे मोदीजी के इरादों पर कोई शक नहीं है । वे भारत को एक उन्नत देश बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं ।
परंतु उनकी मध्यम वर्ग और खासकर प्राइवेट जॉब एम्प्लाइज के प्रति उदासीनता देखकर दुखी हूँ।
- प्राइवेट जॉब करने वाला एम्प्लॉई अपने दिन के सबसे ज़्यादा घंटे जॉब को देता है । अपनी सैलरी का सबसे बड़ा भाग टैक्स के रूप में देता है। परंतु फिर भी उसके जीवन और भविष्य के प्रति सरकार की कोई विशेष रुचि नहीं दिखती । इतने ज़्यादा घंटे कामकर, जीडीपी में अच्छे खासे योगदान के बाद भी अगर भगवान न करे, उसकी जॉब चली जाए, भले ही वो किसी भी कारण से, कंपनी के लॉस में जाने के कारण हो, उसका और उसके परिवार की जवाबदारी लेने को कोई भी योजना नहीं होती । वो फिर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाता है ।
और बस ये सोचता रह जाता है, कि सालों साल जो मैंने अपनी खून पसीने की सैलरी का आधे से ज़्यादा हिस्सा टैक्स में दिया, वो मेरे आज किस काम आ रहा है । वो अपने को ठगा हुआ महसूस करता है ।
मेरा मोदी सरकार से निवेदन है कि इस बेचारे मध्यम प्राइवेट वर्ग के बारे में भी सोचे ।
2. दूसरा, टैक्स में इन्वेस्टमेंट दशकों से सिर्फ 1.5 लाख ही है ।
जबकि लोगों की आय (साथ ही महंगाई) कई गुना बढ़ी है । इससे टैक्स देने के बाद लोगों के हाथ में सेविंग्स बहुत कम बचती है । इन्वेस्टमेंट लिमिट (भले ही गवर्नमेंट बांड) में बढ़ाने से, सरकार के पास इन्वेस्टमेंट भी आएगा और लोगों के पास बचत भी हो पाएगी
जबकि लोगों की आय (साथ ही महंगाई) कई गुना बढ़ी है । इससे टैक्स देने के बाद लोगों के हाथ में सेविंग्स बहुत कम बचती है । इन्वेस्टमेंट लिमिट (भले ही गवर्नमेंट बांड) में बढ़ाने से, सरकार के पास इन्वेस्टमेंट भी आएगा और लोगों के पास बचत भी हो पाएगी
ये सच्चाई है सरकार को इस बारे में ध्यान देना चाहिए, उनके परिवार असुरक्षित हैं।
ReplyDeleteबिलकुल, हमें ही अपनी आवाज़ लोगों और सरकार तक पहुंचानी होगी !
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