मसरूफ़
इस मसरूफ़ियत से भरी दुनिया से बहार झांक कर तो देख ....
जिंदगी कड़ी है तेरे इंतज़ार में ...और सचमुच बहुत ख़ूबसूरत है वो !!!
कभी सूरज की मीठी धूप सेंकी है ?
किसी मुस्कुराते हुए बच्चे को देख कर कितनी बार अनदेखा किया है ? कि दिमाग कहीं और ही मसरूफ़ था !!!
रेलगाड़ी में बैठे कभी बाहर की भीगी हरियाली आँखों में उतरी है ? या तब भी मुआ मन माया की उधेड़बुन में ही शरीक़ था ?
आखिरी बार कब सब कुछ भूल कर पूरी गहरी सांस ली है इत्मीनान की ?
चेहरे पर सच्ची मुस्कान बिना किसी कारण के कब आई थी ? जब तुम्हारी सांस में पूरी साफ़ आत्मा की गहरायी थी ?
कभी सूरज को चढ़ते और ढलते देख मन प्रफ्फुलित हुआ है ? कब किसी अनजान की मदद कर उसके मन को छुआ है ?
ये सब देना चाहती है ज़िन्दगी तुझे, उसे मौका तो दे ....
मसरूफियत को भुला कुदरत को महसूस कर, उसे अपने में समेट ले ....
ज़िन्दगी की भागदौड़ में अंतिम पड़ाव का पता भी नहीं चल पाएगा ; और उपरवाले के घर तेरे डेबिट-क्रेडिट का हिसाब तेरी पासबुक से नहीं लिया जाएगा !!!!!!
-एक कॉर्पोरेट कवि की कविता !!!!
इस मसरूफ़ियत से भरी दुनिया से बहार झांक कर तो देख ....
जिंदगी कड़ी है तेरे इंतज़ार में ...और सचमुच बहुत ख़ूबसूरत है वो !!!
कभी सूरज की मीठी धूप सेंकी है ?
किसी मुस्कुराते हुए बच्चे को देख कर कितनी बार अनदेखा किया है ? कि दिमाग कहीं और ही मसरूफ़ था !!!
रेलगाड़ी में बैठे कभी बाहर की भीगी हरियाली आँखों में उतरी है ? या तब भी मुआ मन माया की उधेड़बुन में ही शरीक़ था ?
आखिरी बार कब सब कुछ भूल कर पूरी गहरी सांस ली है इत्मीनान की ?
चेहरे पर सच्ची मुस्कान बिना किसी कारण के कब आई थी ? जब तुम्हारी सांस में पूरी साफ़ आत्मा की गहरायी थी ?
कभी सूरज को चढ़ते और ढलते देख मन प्रफ्फुलित हुआ है ? कब किसी अनजान की मदद कर उसके मन को छुआ है ?
ये सब देना चाहती है ज़िन्दगी तुझे, उसे मौका तो दे ....
मसरूफियत को भुला कुदरत को महसूस कर, उसे अपने में समेट ले ....
ज़िन्दगी की भागदौड़ में अंतिम पड़ाव का पता भी नहीं चल पाएगा ; और उपरवाले के घर तेरे डेबिट-क्रेडिट का हिसाब तेरी पासबुक से नहीं लिया जाएगा !!!!!!
-एक कॉर्पोरेट कवि की कविता !!!!